Mediation
मध्यस्थता
सर्वोत्तम वैकल्पिक विवाद निस्तारण प्रक्रिया
मध्यस्थता एक सर्वोत्तम वैकल्पिक विवाद निस्तारण प्रक्रिया है जिसमें ‘‘मध्यस्थ’’ द्वारा दोनों पक्षों से उनके सभी विवादों के संबंध में विश्वासपूर्ण तरीके से अलग-अलग एवं संयुक्त रूप से बातचीत की जाती है। विवाद की जड़ तक पहुँच कर दोनों पक्षों को स्वेच्छा से समझौता करने के लिए प्रेरित किया जाता है तथा व्यक्तिगत शंका के निवारण उपरांत व्यावहारिक समाधान सुझाये जाते हैं। यह प्रक्रिया सभी विवादों का अंतिम रूप से निस्तारण करते हुये एक विधिक निर्णय/पंचाट के रूप में शीघ्रतम समाप्त हो जाती है।
मध्यस्थ कौन होता है?
माननीय सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति (MCPC), नई दिल्ली द्वारा प्रशिक्षित निष्पक्ष एवं ख्याति प्राप्त अधिवक्ता या न्यायिक अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता या अन्य उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं आचरण के व्यक्तित्व से समाहित व्यक्तियों का मध्यस्थ के रूप में चयन व पंजीयन किया जाता है। मध्यस्थगण एक तकनीकी प्रक्रिया आधारित व्यवस्था के अन्तर्गत पक्षकारान के विवाद में समाधान उपलब्ध करवाते हैं।
कौनसे विवाद मध्यस्थता से निपटाये जा सकते हैं?
सिविल विवाद, पारिवारिक विवाद, धन वसूली प्रकरण, वाणिज्यिक विवाद, उपभोक्ता विवाद आदि सभी प्रकार के राजीनामा योग्य विवाद मध्यस्थता की मदद से निपटाये जा सकते हैं।
क्या विवाद दर्ज होने से पूर्व भी मध्यस्थता हेतु आवेदन किया जा सकता है?
जी हाँ। कोई भी व्यक्ति/संस्था अपने पारिवारिक/वाणिज्यिक विवाद को पुलिस थाना अथवा न्यायालय में दर्ज करवाने से पूर्व भी मध्यस्थता हेतु आवेदन कर सकते हैं। ऐसा करने से वह कानून की लम्बी प्रक्रिया एवं अनावश्यक धन खर्च से बच सकते हैं।
मध्यस्थता में क्या प्रक्रिया रहेगी?
न्यायालय द्वारा रैफर प्रकरणों में या प्रकरण न्यायालय में दर्ज करवाने से पूर्व आवश्यक मध्यस्थता हेतु विधिक सेवा कार्यालय में आवेदन किया जाता है तथा जज इंचार्ज (मध्यस्थता) के द्वारा मध्यस्थ की नियुक्ति की जाती है तथा मध्यस्थता हेतु उपस्थित होने की तिथि तय की जाकर दोनों पक्षों को यथा समय सूचित कर दिया जाता है।
विवाद निस्तारण के लिए नियुक्त मध्यस्थ के समक्ष दोनों पक्ष स्थानीय मध्यस्थता केन्द्र में नियत तिथि को उपस्थित होते हैं। मध्यस्थ सर्वप्रथम पक्षकारों को अपना परिचय देने के साथ-साथ मध्यस्थता के लाभ और मध्यस्थता की प्रक्रिया बताते हैं। तदुपरान्त दोनों पक्षों से विवाद की जानकारी प्राप्त करते हैं। दोनों पक्षों से अलग-अलग एवं संयुक्त रूप से विवाद की प्रकृति और उसके संभावित हल के बारे में बात करते हैं। दोनों पक्षों को अपने अनुभव, व्यक्तित्व एवं तर्कसंगत सुझावों के माध्यम से विवादों के हल पर पहुंचने में मदद करते हैं। इस तरह दोनों पक्षों को एक विश्वासपूर्ण, गोपनीय एवं अपनत्व भरा वातावरण उपलब्ध होता है जिसमें वे स्वेच्छा से सभी विवादों का आपसी समझौते से निपटारा करते हैं। मध्यस्थ द्वारा पक्षकारों के समझौते को लेखबद्ध किया जाता है जिस पर दोनों पक्ष समझौता सुन-समझ कर एवं स्वीकार होने पर हस्ताक्षर करते हैं।
- न्यायालय से रैफर होने वाले प्रकरणों में- पक्षकारान में समझौता होने पर समझौता लेखबद्ध किया जाकर संबंधित न्यायालय को प्रेषित किया जाता है, तत्पश्चात् न्यायालय द्वारा नियमानुसार प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
- पूर्व-संस्थानिक प्रकरणों में (जहां पक्षकार न्यायालयों में विवाद दर्ज करवाने से पूर्व मध्यस्थता हेतु विधिक सेवा कार्यालय में आवेदन करते हैं)- समझौते के आधार पर यदि सभी विवादों का निस्तारण होता है तो वह सिविल न्यायालय की डिक्री के समान प्रभाव रखता है अर्थात समझौते की पालना सिविल न्यायालय के माध्यम से करायी जा सकती है। इस तरह दोनों पक्षों के विवादों का अंतिम तौर पर निस्तारण हो जाता है जिसकी कोई अपील नहीं होती है।
मध्यस्थता में समझौता नहीं होने पर क्या होता है?
- न्यायालय से रैफर होने वाले प्रकरणों में- मध्यस्थता कार्यवाही में समझौता नहीं होने की सूचना संबंधित न्यायालय को भेज दी जाती है। मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय रहती है। पक्षकारों द्वारा मध्यस्थ को बताई गई बातों एवं आपस में की गई बातचीत का कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है। ऐसे कोई विवरण या कारण न्यायालय को सूचित नहीं किये जाते हैं अर्थात मध्यस्थता कार्यवाही असफल होने की दशा में मामले पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि पूर्व की भांति प्रकरण में आगे सामान्य तरीके से विधिक कार्यवाही जारी रहती है।
- पूर्व-संस्थानिक विवादों में (जहां पक्षकार न्यायालयों में विवाद दर्ज करवाने से पूर्व मध्यस्थता हेतु विधिक सेवा कार्यालय में आवेदन करते हैं)- मध्यस्थता कार्यवाही में समझौता नहीं होने पर संबंधित मध्यस्थता केन्द्र द्वारा असफल रिपोर्ट संबंधित पक्षकारान् को जारी की जाती है। मध्यस्थता कार्यवाही असफल रहने पर पक्षकारान् प्रकरण में विधि सम्मत् कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। मध्यस्थता कार्यवाही असफल होने की दशा में मामले पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है तथा प्रकरण विधि अनुसार न्यायालय में दायर किया जा सकता है।
क्या मध्यस्थता के मंच पर जाने से न्यायिक कार्यवाही विलंबित हो जाती है?
जी नहीं। मध्यस्थता कार्यवाही अधिकतम दो माह या इससे पूर्व ही सम्पन्न हो जाती है। पक्षकारों के निवेदन पर तीस दिन का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है। मध्यस्थता असफल होने पर पक्षकार न्यायालय में प्रकरण दर्ज करने की स्वतंत्रता रखता है।
मध्यस्थता में पक्षकार उपस्थित नहीं हों तो क्या होगा?
- न्यायालय से रैफर होने वाले प्रकरणों में- न्यायालय द्वारा पक्षकारों की सहमति से विवाद को मध्यस्थता हेतु रैफर किया जाता है। न्यायालय द्वारा प्रकरण रैफर करते समय पक्षकारों को मध्यस्थता के लाभ बताते हुए उन्हें मध्यस्थता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। आवश्यकता होने पर मध्यस्थता केन्द्र द्वारा डाक/ई-मेल/एस.एम.एस से या नजारत से उपस्थिति के नोटिस भिजवाये जाते हैं। फिर भी यदि पक्षकार नहीं आते हैं तो यह माना जाता है कि संबंधित पक्षकार मध्यस्थता के द्वारा विवाद के निस्तारण में रूचि नहीं रखते हैं तथा न्यायालय आगामी विचारण प्रक्रिया प्रारंभ कर देते हैं।
- पूर्व-संस्थानिक विवादों में (जहां पक्षकार न्यायालयों में विवाद दर्ज करवाने से पूर्व मध्यस्थता हेतु विधिक सेवा कार्यालय में आवेदन करते हैं)- इस प्रकार के विवादों में प्रार्थी पक्ष मध्यस्थता केन्द्र में विवाद दायर करते हैं तथा मध्यस्थता केन्द्र द्वारा विपक्षीगण को नोटिस जारी कर उपस्थित होने हेतु निर्देशित किया जाता है। यदि विपक्षी उपस्थित नहीं होते हैं तो यह माना जाता है कि संबंधित पक्षकार समझौते का इच्छुक नहीं है तथा संबंधित मध्यस्थता केन्द्र द्वारा ‘‘नॉन-स्टार्टर रिपोर्ट‘‘ प्रार्थी को जारी की जाती है तत्पश्चात् प्रार्थी/याची/वादी न्यायालय में वाद/परिवाद दायर करने के लिए स्वतंत्र रहता है।
क्या मध्यस्थता में पक्षकार के अधिवक्तागण उपस्थित रह सकते हैं?
मध्यस्थ द्वारा एक सुनिश्चित प्रक्रियानुसार मध्यस्थता कार्यवाही की प्रक्रिया पूरी की जाती है। मध्यस्थ स्वयं के विवेकानुसार तथा प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों के प्रकाश में पक्षकारान के अधिवक्तागण से राय प्राप्त कर सकता है या किसी स्वतंत्र विशेषज्ञ से भी राय प्राप्त की जा सकती है।
क्या मध्यस्थता के लिए कोई फीस देनी पड़ती है?
प्रकरण को मध्यस्थता हेतु रैफर करने के निवेदन के क्रम पर या रैफर प्रकरण में मध्यस्थता प्राप्त करने के अवसर पर पक्षकार द्वारा कोई फीस या शुल्क देय नहीं होता है। मध्यस्थता की यह व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क है।
क्या मध्यस्थता से कोई हानि संभव है?
कोई हानि नहीं होती है। फायदा ही फायदा है। न्यायालय में विचारण की लंबी प्रक्रिया से मुक्ति रहती है तथा कम समय में ही समाधान हो जाता है। यह प्रक्रिया सौहार्दपूर्ण संबंधों की पुनर्स्थापना, परिवार में शांति, समृद्धि और विकास की ओर अग्रसर करती है, जिसकी मूल भावना है कि ‘‘सभी की जीत-किसी की हार नहीं।‘‘
मध्यस्थता के माध्यम से विवाद के निराकरण के लिए क्या करना चाहिये?
सामान्यतः विचारण न्यायालय उचित मामलों को मध्यस्थता के लिए रैफर करते हैं। पक्षकार भी राजीनामा योग्य मामलों को मध्यस्थता के लिए भिजवाने हेतु संबंधित न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकते हैं एवं पारिवारिक/वाणिज्यिक मामले, जिन्हें न्यायालय में दर्ज नहीं किया गया है, को मध्यस्थता से निपटाने हेतु संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में व्यक्तिशः/ई-मेल/डाक से आवेदन किया जा सकता है, जहाँ प्रकरण मध्यस्थता केन्द्र में दर्ज कर मध्यस्थता प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।
आवेदन के प्रारूप के लिए यहां क्लिक करें
मध्यस्थता के संबंध में अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करें: 0141-2227555, Helpline No. 9928900900, Email Id: rslsajp@gmail.com
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