स्थिति और कानूनी सहायता
अनुच्छेद 39-ए को 3.1.1977 से संविधान में संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा शामिल किया गया। यह राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करे और यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए। सभी को समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता अनुच्छेद 39-ए की पहचान है।
इन उद्देश्यों के अनुसरण में संसद द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 को अधिनियमित किया गया था, ताकि समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क और सक्षम विधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरणों का गठन किया जा सके, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक या अन्य असमर्थताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए और यह सुनिश्चित करने के लिए लोक अदालतों का आयोजन किया जा सके कि विधिक प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन:-
- प्रत्येक राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन राज्य प्राधिकरण को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने तथा उसे सौंपे गए कार्यों का पालन करने के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नामक एक निकाय का गठन करेगी।
- राज्य प्राधिकरण में निम्नलिखित शामिल होंगे-
- उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश जो मुख्य संरक्षक होगा;
- उच्च न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जिसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्यपाल द्वारा नामित किया जाएगा, जो कार्यकारी अध्यक्ष होगा; तथा
- राज्य सरकार द्वारा निर्धारित अनुभव और योग्यता रखने वाले उतनी संख्या में अन्य सदस्य, जो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से उस सरकार द्वारा नामित किए जाएंगे।
- राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, राज्य उच्चतर न्यायिक सेवा से संबंधित किसी व्यक्ति को, जो जिला न्यायाधीश से निम्नतर पंक्ति का न हो, राज्य प्राधिकरण के सदस्य-सचिव के रूप में नियुक्त करेगी, ताकि वह राज्य प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन कर सके, जो उस सरकार द्वारा विहित किए जाएं या जो उस प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा उसे सौंपे जाएं: परंतु राज्य प्राधिकरण के गठन की तारीख से ठीक पहले राज्य विधिक सहायता और सलाह बोर्ड के सचिव के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति को, चाहे वह इस उपधारा के अधीन उस रूप में नियुक्त किए जाने के लिए अर्हित न हो, पांच वर्ष से अनधिक अवधि के लिए उस प्राधिकरण के सदस्य-सचिव के रूप में नियुक्त किया जा सकेगा।
- राज्य प्राधिकरण के सदस्यों और सदस्य-सचिव की पदावधि और उससे संबंधित अन्य शर्ते ऐसी होंगी, जो राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से निर्धारित की जाएंगी।
- राज्य प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के कुशल निर्वहन के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित संख्या में अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकेगा।
- राज्य प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्ते के हकदार होंगे तथा सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे, जो राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से निर्धारित की जाएं।
- राज्य प्राधिकरण के प्रशासनिक व्यय, जिनमें राज्य प्राधिकरण के सदस्य-सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को देय वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, राज्य की संचित निधि से चुकाए जाएंगे।
- राज्य प्राधिकरण के सभी आदेश और निर्णय राज्य प्राधिकरण के सदस्य सचिव या राज्य प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा विधिवत् प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा प्रमाणित किए जाएंगे।
- राज्य प्राधिकरण का कोई भी कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अवैध नहीं होगी कि राज्य प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है।