लोक अदालत भारत में विकसित वैकल्पिक विवाद समाधान की एक प्रणाली है। इसे “जनता की अदालत” कहा जा सकता है। लोक अदालत एक ऐसा मंच है जहाँ न्यायालय में या मुकदमे के पूर्व चरण में लंबित विवादों/मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा/समझौता किया जाता है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा दिया गया है। उक्त अधिनियम के अंतर्गत, लोक अदालतों द्वारा दिया गया निर्णय सिविल न्यायालय का आदेश माना जाता है और यह अंतिम होता है तथा सभी पक्षों पर बाध्यकारी होता है तथा इसके निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती।
लोक अदालत में भेजे जाने वाले मामलों की प्रकृति
- किसी भी न्यायालय में लंबित कोई भी मामला।
- कोई भी विवाद जो किसी न्यायालय के समक्ष नहीं लाया गया है तथा न्यायालय के समक्ष दायर किये जाने की संभावना है।
परन्तु यह कि कानून के अधीन समझौता योग्य न होने वाले किसी अपराध से संबंधित कोई मामला लोक अदालत में नहीं निपटाया जाएगा।
निपटारे के लिए मामले को लोक अदालत में कैसे भेजा जाए?
- न्यायालय में लंबित मामला: यदि पक्षकार लोक अदालत में विवाद का निपटारा करने के लिए सहमत हों या पक्षों में से कोई एक न्यायालय में आवेदन करे या न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि मामला लोक अदालत में निपटारे के लिए उपयुक्त है।
- मुकदमे के पूर्व चरण में किसी भी विवाद के लिए, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या तालुक विधिक सेवा समिति, जैसा भी मामला हो, मुकदमे के पूर्व चरण के किसी भी मामले में किसी भी पक्षकार से आवेदन प्राप्त होने पर, ऐसे मामले को सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालत को भेजती है।
| वर्ष | निपटाए गए कुल मामलों की संख्या | निपटाए गए एमएसीटी मामलों की कुल संख्या | निपटान राशि (रुपये में) |
|---|---|---|---|
| 2024 | 978 | 13 | 8260851 |
| 2023 | 966 | 14 | 9236691 |
| 2022 | 1678 | 56 | 77519609 |
| 2021 | 1338 | 84 | 52204529 |
| 2020 | 1585 | 67 | 30511497 |
| 2019 | 7443 | 221 | 115109108 |
| 2018 | 12789 | 723 | 380676084 |